(नागपत्री एक रहस्य-43)

सागर में विचरण कर लक्षणा जो अपने स्वप्न में देखती थी, कदंभ लक्षणा को अपने पीठ पर बैठाकर उस और निकल पड़ता है, और लक्षणा को कुछ नाग और सर्पों के रहस्य के बारे में भी बताते हैं, कदंभ अश्व लक्षणा को बताते है कि.. शेषनाग, वासुकी नाग, तक्षक नाग, कर्कोटक नाग और पिंगला नाग की खास पूजा का विधान है, कहा जाता हैं कि इन पांच प्रमुख नागों की वजह से ही नाग देवता कहलाते हैं

शेषनाग शास्त्रों के अनुसार शेषनाग को ब्रह्मांड का पहला नाग माना गया है, कहते हैं पृथ्वी शेषनाग के सिर पर ही टिकी हुई है, शेषनाग त्रेतायुग में लक्ष्मण और फिर द्वापर में बलरामजी के रूप में अवतरित हुए थे, इन्हें भगवान विष्णु का परम सेवक माना जाता है, धार्मिक मान्यता के अनुसार शेषनाग के हजारों सिर है जिसका कोई अंत नहीं, इसलिए इन्हें अनंत भी कहा जाता है,शेषनाग कश्यप ऋषि की पत्नी कद्रू के सबसे बड़े, पराक्रमी नागराज हैं।

वासुकी नाग शिव के गले में जो नाग विराजमान हैं, उनका नाम वासुकी है, वासुकी शेषनाग के भाई माने जाते हैं,नागलोक में शेषनाग के बाद वासुकी नाग का ही स्थान आता है, वासुकी को ही रस्‍सी बनाकर सुमेरू पर्वत के चारों ओर लपेटकर सागर का मंथन किया,वासुकी नाग शिव जी के परम सेवक हैं।

तक्षक नाग तक्षक को नागवंश में सबसे खतरनाक सर्प माना जाता है, ऐसी मान्यता है कि तक्षक नाग ने ही तक्षकशिला की स्थापना की थी, तक्षक नाग के डंसने पर राजा परीक्षित की मृत्यु हुई थी, जिसका बदला लेने के लिए उनके पुत्र जनमेजय ने नाग जाति का नाश करने के लिए नाग यज्ञ करवाया था।

कर्कोटक नाग जब नाग जाति का नाश करने के लिए जो यज्ञ किया था ,उसमें कर्कोटक शिव जी के वरदान से बच निकले थे, यज्ञ के दौरान कर्कोटक ने शिव जी की स्तुति की थी, मान्यता है कि वहां निकलने के बाद कर्कोटक नाग ने शिव की घोर तपस्या की थी

पिंगला नाग हिंदू व बौद्ध साहित्य में पिंगल नाग को कलिंग में छिपे खजाने का संरक्षक माना गया है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार वर्तमान श्रीश्वेतवाराह कल्प में सृष्टि सृजन के आरंभ में ही एकबार किसी कारणवश ब्रह्मा जी को बड़ा क्रोध आया जिनके परिणामस्वरूप उनके आंसुओं की कुछ बूंदें पृथ्वी पर गिरीं और उनकी परिणति नागों के रूप में हुई, इन नागों में प्रमुख रूप से अनन्त, कुलिक, वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, और शंखपाल आदि प्रमुख हैं।

अपना पुत्र मानते हुए ब्रह्मा जी ने इन्हें ग्रहों के बराबर ही शक्तिशाली बनाया, इनमें अनंतनाग सूर्य के, वासुकि चंद्रमा के, तक्षक मंगल के, कर्कोटक बुध के, पद्म बृहस्पति के, महापद्म शुक्र के, कुलिक और शंखपाल शनि ग्रह के रूप हैं।

ये सभी नाग भी सृष्टि संचालन में ग्रहों के समान ही भूमिका निभाते हैं,इनसे गणेश और रूद्र यज्ञोपवीत के रूप में, महादेव श्रृंगार के रूप में तथा विष्णु जी शैय्या रूप में सेवा लेते हैं। ये शेषनाग रूप में स्वयं पृथ्वी को अपने फन पर धारण करते हैं। वैदिक ज्योतिष में राहु को काल और केतु को सर्प माना गया हैं।

नमोऽस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथ्वी मनु! ये अन्तरिक्षे ये दिवि तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः।

यानी जो नाग, पृथ्वी, आकाश, स्वर्ग, सूर्य की किरणों, सरोवरों, कूप तथा तालाब आदि में निवास करते हैं, वे सब हम पर प्रसन्न हों, हम उनको बार-बार नमस्कार करते हैं ,इसके लिए शिवमंदिर में प्राणप्रतिष्ठित शिवलिंग पर स्थापित नाग की पूजा भी कर सकते हैं।

तब कदंभ से लक्षणा कहती है, इन सबकी जानकारी मुझे मेरे दादाजी और दादीजी ने दी हैं। कहते हुए तभी अचानक आवाज़ आई ...

"सावधान लक्षणा अपने विचारों की शक्ति को विराम दो, और ऐसा दुस्साहस भी ना करना जो तुम मन में सोच रही हो, उसके पूर्व ही एक बार तुम अपना जन्म गवा चुकी हो, आखिर क्यों और किस लिए चाहिए तुम्हें यह नागपत्री?? क्या करोगी तुम इसका??? यह तो महज बंधन है, बिखरे हुए सार सूत्रों का"

अचानक अपनी बाईं ओर से आने वाली आवाज पर लक्षणा ने गौर किया, और इस सर्पिलाकर अर्धनर आकृति बिना सिर वाली जिसका सिर उससे अलग था और धड़ अलग था।और वह हवा में लहरा रहे थे।

लक्षणा को समझते देर न लगी कि वह राहु केतु के ही प्रतिरूप है, लक्षणा मुस्कुराते हुए कहने लगी, अवश्य मुझे ज्ञात है मेरा उद्देश्य और मेरा पूर्व जन्म भी, लेकिन तब भी रुकमणी की शक्तियां कम नहीं थी और अब वह सेविका थी, जिसे तुमने भ्रम जाल में डालकर छल किया था, लेकिन विधाता सब कुछ जानता है।

आज स्वयं नागकन्याओ का अंश रुकमणी की शक्तियों सहित उपस्थित है, लक्ष्य पूर्ति हेतु और हे महापुरुष यदि सब कुछ सामान्य है, तब आप यहां क्या कर रहे हैं?? आपके लिए अमृत पा लेना भी तो सामान्य था शायद, कहते हुए लक्षणा ने उनकी ओर देखा।

ऐसा उपहास सुन उन दोनों को क्रोध आया और कहने लगे, सूर्य और चंद्र का उपहास करने वाले और पल भर में दृष्टि मात्र से मनुष्य का जीवन बदल देने वाले राहु और केतु का प्रतिरूप है हम। अरे नादान लड़की, इतनी कम उम्र में ऐसा उपहास तुम्हें क्या भय नहीं लगता?? यदि जरा भी विचार है अपने जीवन का तो इसी पल लौट जाओ, हम तुम्हें वर देंगे कि पूरा जीवन तुम्हारे कुल में किसी को भी हमारी दृष्टि का कोप नहीं रहेगा। लौट जाओ..... लौट जाओ....

लक्षणा शांतिपूर्वक सब कुछ सुनने के पश्चात कहने लगी, अवश्य ही ईश्वरीय साधना करने वाले को किसी भी व्याधि या कोप का डर नहीं होता, आपके वरदान के लिए धन्यवाद, मेरा लक्ष्य आप शायद भली-भांति जानते हैं, फिर भी यदि यह सामान्य है, तब आप यहां क्या कर रहे हैं??

क्यों नहीं अब तक आप इस नागपत्री के अंशों को पढ़ पाए, मैं जान सकती हूं कि कबसे इन नागपत्रियों के एकत्रित होने और निखरने के समय उन्हें स्पर्श ना कर पाने की शक्ति के कारण आप सिर्फ उन्हें दूर से ही पढ़ने का प्रयास कर रहे हैं,

क्यों नहीं अब तक आप उन्हें खुद हासिल कर लेते, यदि सात्विकता होती तो अभी तक इस देवी सागर में उतर कर जो क्षीर सागर की गहराइयों में केंद्र बिंदु पर स्थित है, क्यों नहीं आपने उसके अध्ययन का फल उठाया?? आखिर क्या कारण है जो आपने इन सब का लाभ नही लिया, लक्षणा के प्रश्न तो जैसे समाप्त नहीं हो रहे थे।

क्रमशः....

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